Tuesday 6 January 2015

बसंत(गीत)




घूंघट के पट खोल कोई
नयनो की भाषा बोले ।
गीत लिखूं मै नया कोई
जब कंगना खन-खन बोले ।
धरती की धानी चूनर अंबर के मन भाई ।
अंग अंग छाया बसंत ले यौवन अंगड़ाई ।।
ऋतु संदेश ले पवन बावली दिन-दिगंत डोले ।
गीत लिखूं नित नया कोई
जब कंगना खन-खन बोले ।।1।।
प्रेम पिपासु पिया की पाती छुप-छुप कर खोले ।
खोले भेद हिया का चंचल चितवन हौले-हौले।।
संभल-संभल कर चले गोरी
पायलिया रुन-झुन बोले ।
गीत लिखूं नित नया कोई
जब कंगना खन-खन बोले ।।2।।

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