घूंघट के
पट खोल कोई
नयनो की
भाषा बोले ।
गीत लिखूं
मै नया कोई
जब कंगना
खन-खन बोले ।
धरती की
धानी चूनर अंबर के मन भाई ।
अंग अंग
छाया बसंत ले यौवन अंगड़ाई ।।
ऋतु संदेश
ले पवन बावली दिन-दिगंत डोले ।
गीत लिखूं
नित नया कोई
जब कंगना
खन-खन बोले ।।1।।
प्रेम
पिपासु पिया की पाती छुप-छुप कर खोले ।
खोले भेद
हिया का चंचल चितवन हौले-हौले।।
संभल-संभल
कर चले गोरी
पायलिया
रुन-झुन बोले ।
गीत लिखूं
नित नया कोई
जब कंगना
खन-खन बोले ।।2।।
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