हो चली है सांझ
बन्धु ।
चल चले निज धाम
बंधु ।।
पंक्षियों की
कलरवो में ।
गौ धुली पैगाम
बन्धु।।
अपने अंबर से
मिलन को ।
कर रही श्रृंगार
अवनि।।
अंक में दिन को
समेटे ।
कर रही अभिसार
रजनी ।।
आगया चन्दा
पिलाने ।
चांदनी के जाम
बन्धु।।1।।
द्वार पर पलके
बिछाये ।
जोहती है बाट
रमणी ।।
आ गई सागर किनारे
।
हो गई है पार
तरणी ।
झूम कर मल्लाह
गाये ।
मीठे-मीठे गान
बन्धु ।।2।।
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