किससे
कहूं कैसे कहूं हैरानगी मेरी ।
सबको
लगे हरी-भरी वीरानगी मेरी ।।
पश्चिमी
हवा में सांस ले रहा हूं मैं।
न जाने
कहां खो गई है सादगी मेरी ।
आस्था
के दीप आंधिया बुझा गई ।
भटक रही
है पत्थरों में बंदगी मेरी ।.
सहला
रही है आलपिनें उंगलियों के घाव ।
कागजों
में खो गई है जिंदगी मेरी ।।
उनके
ठहाके ले गये मुस्कान छीनकर।
खुशियाँ
तलाशती रहीं दीवानगी मेरी ।।
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