Tuesday 6 January 2015

क्षणिकाएं

1. दिमाग जब नही चलता था
  तो लोग कहते थे बुद्धु है ।
  और अब चलने लगा है
  तो कहते है दिमाग चल गाया ।।


2.राम और रोटी की लड़ाई में
नेता श्रीराम हो गये ।
और भोले – भाले लोग
रोटी राम हो गये ।।

3.मन का भरम है या आंखों ने छला,
जंगल में आग लगी तिनका न जला ।
संपूर्ण साक्षरता मिशन कुछ ऐसे ही चला,
शिक्षित सुशिक्षित हो गये
अशिक्षितों को पता न चला ।।


4.नजरो का नजरों को नजराना होली
हमसे लड़ाई नजर और संग होली।।



5.बिन दहेज दुल्हा जी ऐसे दुल्हन का घूंघट खोले ।
जैसे बाबू बिना घूस फाईल का फीता खोले ।।


6 जब वो संभल- संभल कर चलते थे
तो रहम आता था कि बेचारे पैदल है ।
अब अकड़-अकड़ कर चलते है
तरस आता है अक्ल से अब भी पैदल है ।।


7.पत्नि का संबोधन अजी सुनिये
सुनो फिर सुन हो गया ।
बेचारा पति परमेश्वर की मूरत सा
सुन्न हो गया ।।


8.मूल चन्द के मूल पे लक्ष्मी चंद ले ब्याज
माया राम की माया आवे धनपाल के काज।
दीनू जी के नाम दीनता लिख गये दयाराम
भीखू जी को भीख में दुःख देते दुखी राम ।।


9.वो सर मुण्डाकर भी नहीं डरता है,बात ओलो की किया करता है ।
पाक की इस पंचर फुटबाल में,
न जाने कौन हवा भरता है ।।


10.ज़िन्दगी चार दिन का मेला है ,
आदमी भीड़ में अकेला है ।
स्वार्थ के पात्र सब दुनिया नौटंकी ,
न कोई मजनू है न लैला है ।।


11.गरीबों की पीड़ा ,
अमीरों की क्रीड़ा ।
इनके हाल तंग,
उनके रास रंग ।।


12.बेचारे भुखमरी के करीब है , इतने गरीब है ,
रोज लाते है रोज खाते है ।
नई-नई योजनाएं नये-नये बजट,
आधा लगाते है आधा उड़ाते है ।।


13.बेईमानी ओढते है मक्कारी बिछाते है ,
गरीबों के हक पर सैया सजाते है ।
जिनके हवाले देश उनका हवाला
घपलों पे घपले जरा न लजाते है ।।


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